राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एन.एम.एच.एस)
क्रियांन्वयन- पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार
नोडल एवं सेवा केन्द्र- जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान

वृहद विषयगत क्षेत्र - 3- जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन

भारत एशिया ही नहीं दुनियां भर में अपनी उन्नत पारिस्थितिकी के लिए जाना और माना जाता है। यहां मानव कल्याण हेतु प्रचुर मात्रा में वृहद पर्वतीय ढलानों उनकी स्थिरता, अखण्ड जलविद्युत शक्ति, उच्च स्तर की जैव विविधता विद्यमान है। अपनी अनन्य और अक्षम जैव विविधता के कारण वर्तमान में विश्व स्तर पर जैव विविधता संरक्षण में इसे प्राथमिकता दी जा रही है। हिमालय में भारतीय हिमालयी क्षेत्र समृद्ध एवं उल्लेखनीय जैव विविधत के साथ अत्यंत क्रियाशील परिदृश्य भी है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र लगभग 7.5 लाख वर्ग किमी विस्तृत क्षेत्र में फैला है। इसमें 3 हजार किमी लंबाई, 250 से 300 किमी चैड़ाई का वृहद क्षेत्र फैला है और यह समुद्र तल से 300 से 8000 मीटर तक उभारा क्षेत्र सम्मिलित है। यह क्षेत्र में विविध प्रकार का भू- क्षेत्र एवं मृदा तथा विविध प्रकार की वनस्पतियां एवं जलवायु स्थितियां के साथ अद्वितीय वनस्पतियां एवं उच्च स्तर की स्थानिकता के लिए भी विख्यात है। इस क्षेत्र में 10 हजार पौध प्रजातियां जिसमें 31.6 स्थानिक, 300 स्तनधारी जिसमें 4 प्रतिशत स्थानिक, 979 चिडियां प्रजाति जिसमें 1.5 प्रतिशत स्थानिक, 176 सरीसृप जिसमें 27.3 प्रतिशत स्थानिक व 105 उभयचर जीव जिसमें 40 प्रतिशत स्थानिक, 269 मछली जिसमें 12.3 प्रतिशत स्थानिक का समावेश है। यह क्षेत्र विविधता में स्थानिक समुदायों की भी मेजमानी करता है जो दूरस्थ एवं जटिल भूगोल में रहते हैं। यह समुदाय परम्परागत रूप से अपनी जरूरतों के लिए सतत् रूप से जैव उत्पादों पर निर्भर है। प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ वाले अन्य जैव उत्पादों के साथ ही यह क्षेत्र विविध औषधीय पौधों, वन्य खाद्य उत्पादों, और अन्य गैर काष्ठ वन्य उत्पादों के लिए भी माना जाता है। यह क्षेत्र भारत में 1748 (23.4 प्रतिशत) औषधीय पौधों, एवं विश्व स्तर पर 675 वन्य खाद्य प्रजातियों के लिए जाना जाता है।

स्थापित उपयोगिता के बाद भी भारतीय हिमालयी क्षेत्र की विविधता अपने प्राकृतिक रूप से घटती जा रही है। आवासीय क्षति, जलवायु परिवर्तन, सड़कों का निर्माण, वनाग्नि, नगरीकरण, जल निकासी और अन्य मानवजनित दबावों के कारण यह परिवर्तन देखा जा रहा है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए विश्व स्तर पर इसके संरक्षण एवं सतत् उपभोग हेतु कई पहल की गई है। इस क्षेत्र में राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन द्वारा 40 मांग आधारित शोध परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है जो चार प्रमुख लक्ष्यों पर केंद्रित है। जो निम्नवत् है- 1- पर्वतीय जैव विविधता डाटाबेस, 2-पारिस्थितिक तंत्र स्वास्थ्य एवं दोहन क्षमता आंकलन, 3- संवेदनशील प्रजातियों के संरक्षण को प्रोत्साहन (दुर्लभ, स्थानिक, खतरे की जद में एवं आर्थिक रूप से उपयोगी ) 4- संरक्षण शिक्षा के द्वारा वृद्धि एवं बाह्य पहुंच। इस वृहद विषयगत क्षेत्र के मुख्य रूप से चिन्हित कार्य के विषयगत क्षेत्र (टाव) निम्नवत् हैं। 1. कृषि-जैव विविधता सहित दुर्लभ, स्थानीय , विलुप्त होने की कगार में और विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण जीव व वनस्पति प्रजातियों के आनुवंशिक स्रोत्तों का संरक्षण, 2. नुकसानदेह बाह्य प्रजातियां, 3. बहुउपयोगी वृक्ष एसं अन्य वनस्पतियां, उनके जैविक उपयोग, सक्रमिका अध्ययन, विशेषकर वृक्षविकास-रेखा संक्रमिका और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं (पीईएस)/ विकास ऐजेण्डे में दर्शनीय पारिस्थितिक सेवाएं , गैर काष्ठ वन्य उत्पाद (एनटीएफपी), कार्यसूची में सम्मिलित औषधीय एवं सगंध पौधे और अन्य कीमती निकेत उत्पाद।

आच्छादित भारतीय हिमालयी राज्य - समस्त 12 भारतीय हिमालयी राज्य

स्तर प्रतिनिधित्व
कुल संख्या
भारत का प्रतिशत
पर्यावरण क्षेत्रीय समुदाय
21
-
वनस्पति प्रकार
10
-
वन प्रकार
11
26
प्रजातियां
अनावृतबीजी
8000
47
अनावृतबीजी
44
81
टेरिडोफाइटा
600
59
ब्रायोफाइट्स
1737
61
लाईकेन ( शैवाल )
1159
59
कवक
6900
53
स्तनधारी
300
69
पक्षी
979
79
सरीसृप
176
38
उभयचर
105
34
मछली
269
10
विशिष्ठ समूह
औषधीय
1748
23
वन्य खाद्य
675
67
वृक्ष
723
28
Source: Indian Himalayan Biodiversity: Richness, Representativeness, Uniqueness and Life Support Value. GBPIHED, Almora, Uttarakhand


प्रमुख उद्देश्य

संपूर्ण हिमालय क्षेत्र में पुष्प विविधता की दीर्घकालीन निगरानी हेतु निगरानी क्षेत्रों की स्थापना करना।
पर्यावरणीय परिवर्तन आधारित तथा मानवीय प्रभावों का जंतु और पौध जगत की विविधता पर पड़ रहे प्रभावों को सम्मिलित करते हुए हिमालयी वनस्पति पर भूगर्भीय एवं आनुवांशिक डेटाबेस की स्थापना करना ।
उत्तर-पूर्व भारत में कोयला खदान क्षेत्रों के साथ झूम खेती क्षेत्रों की दीर्घकालिक पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकीय निगरानी, एवं खादन से अम्लीय स्राव के उपचार हेतु तकनीकी विकास करना।
जनसंख्या एवं आवासों का मूल्यांकन, पारिस्थितिक निकेत प्रारूपीकरण एवं संकटग्रस्त/मूल्यवान औषधीय पौधों का संरक्षण करना।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में व्यवसायिक रूप से महत्वपूर्ण औषधीय एवं सगंध पादपों के साथ दुलर्भ, संकटग्रस्त एवं लुप्तप्राय प्रजातियों के साथ गैर काष्ठ वन्य उत्पादों का आंकलन एवं वितरण तथा प्रचुरता का अध्ययन करना।
वाहिकीय विदेशी पौध प्रजातियों के पर्यावरणीय दबावों की पहचान एवं मानचित्रण ।
पारिस्थितिकीय एवं पर्यावरणीय प्रभावों का आॅकलन।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में मानव वन्य जीव टकराव वाले चिन्हित क्षेत्रों में आॅकलन एवं जोखिम मूल्यांकन करने वाले उपकरणों एवं प्रक्रिया का विकास एवं निरंतर निगरानी एवं क्षेत्र विशेष में समस्याओं का शमन तथा संभावित समस्याग्रस्त क्षेत्रों की पूर्व पहचान करना।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में संकटग्रस्त कशेरुकी जीवों का आंकलन एवं निगरानी करना।
उत्तराखण्ड में स्थानीय फसलों, (बाजरा, दालों व सब्जियों ) के जर्मप्लाज्म/स्थानीय नस्लों का मूल्यांकन, संग्रहण एवं शुद्धिकरण करना।
बाजरा व दालों तथा सब्जियों के बीजों में आय संवर्धन की पहचान हेतु अद्वितीय जर्मप्लाज्म में प्राकृतिक पद्धति (इन-स्चू कंजरवेशन)से आनुवांशिक संरक्षण के प्रारूप का विकास करना।
वृक्ष रेखा क्षेत्रभूमि अंतराफलकीय के साथ विभिन्न क्षेत्रों में वनस्पति के ढांचे का मूल्यांकन, संरचना, पद्धति का आंकलन ।
जर्मप्लाज्म संग्रह और चयनित प्रजातियों के डीएनए बैंकों का रखरखाव।
विलुप्त हो रहे आर्थिक रूप से मूल्य वर्धित आर्किज प्रजातियों के संवर्धन एवं सूक्ष्म वृद्धि हेतु जैव प्रौद्योगिकी पद्धतियों का विकास।
उत्तराखण्ड में उच्च क्षेत्रों में वाणिज्यिक रूप से महत्वपूर्ण औषधीय और सगंध पौधों, दुर्लभ एवं लुप्तप्राय, संकटग्रस्त तथा गैर काष्ठीय वन्य उत्पादों के वितरण और प्रचुरता का आंकलन।
शैक्षिक पर्यटन स्थल के रूप में औषधीय और सुगंधित पौधों के पूर्व स्थलीय संरक्षण हेतु क्षेत्र का विकास (पर्वतीय शोध संस्थान, तुंगनाथ)।
उच्च पर्वतीय क्षेत्रों के लिए एक स्थानिक वितरण और प्रचुरता डेटाबेस तथा औषधीय और सगंध पादपों की पारिस्थितिक विशेषताओं का निर्माण। एक वेब आधारित उत्तराखण्ड एल्पाइन सूचना प्रणाली (यूके-एआईएस) का विकास करना।
अध्ययन क्षेत्रों के नए वनों हेतु प्रजाति विविधता, वितरण और समुदाय संरचना के सुदृढ़ उपायों की प्राप्ति।
चीड़ वनों में गैर वनाग्नि क्षेत्रों से तुलना करते हुए वनाग्नि पश्चात सूक्ष्मजीवों की जैव विविधता एवं मृदा गुणों (संयोजन एवं क्षरण क्षमता)में होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण।
सेटेलाईट चित्रण (आईआरएस-एलआईएसएस-5) से अध्ययन क्षेत्र हेतु उच्च रिजाल्यूशन (~5.6 m) का विस्तृत क्षेत्र आधारित मानचित्र् एवं भूमि नियंत्रण माप का व्यापक निर्धारण प्राप्त करना ।
प्राथमिक व द्वितीय वनस्पति वनों का विभाजन करते हुए भूमि अधिगृहण/मालिकाना पद्धतियों का मानचित्र करण । क्षेत्र की भूमि को उपयोग व नियंत्रित करने वाली संस्थाओं की संरचनाओं व सामाजिक पृष्ठभूमि का विश्लेषण करना।
जैव विविधता संरक्षण, जलसंग्रहण क्षेत्र विकास और आजीविकास सुधार द्वारा समुदाय एवं पारिस्थितिकीय तंत्र को सरल बनाकर समुदाय और स्थानीय शासन शासन की अनुकूलन क्षमता में सुधार करना।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बारिश व तापमान की भिन्नता की जाच करना।
आने वाले दशकों में जैव विविधता और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं पर बदलती जलवायु व्यवस्थाओं के प्रभाव का अध्ययन।
आजीविका में सुधार हेतु नए हस्तक्षेपों पर सहभागी शोध कार्यवाही करना।
अध्ययन क्षेत्रों में होने वाले प्राथमिक वनों की प्रजातियों की विविधता, वितरण और सामुदायिक के सदृढ़ उपायों की प्राप्ति।
उच्च वर्णक्रमीय उपग्रह एवं वायुजनित आकड़ों के द्वारा आर्थिक महत्व वाले पौधों की प्रजातियों की वर्णक्रमीय पुस्तकालय विकास करना।
अत्यधिक खतरे वाली प्रजातियों को बचाने व पुनरुत्पादन हेतु प्रजातियों के विशिष्ठ प्रोटोकाल का विकास।
उत्पादित उपजों हेतु बाजार अवसरों का विकास करना।
खतरे में आ चुके औषधीय पौधों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न हितधारक समूहों को संवेदनशील बनाना।

संचालित परियोजनाएं- (40 परियोजनाएं- वृहद अनुदान- 6, मध्यम अनुदान- 20 व लघु अनुदान -14 )

वित्तीय वर्ष 2015-16
1 भारतीय हिमालयी भू-क्षेत्र में दीर्घकालिक निगरानी प्लाट के द्वारा जैव विविधता का मूल्यांकन।
2 हिमालय की वृक्षरेखा एवं उच्च ढलान युक्त पारिस्थितिकी एवं गर्म जलवायु में मानवीय जीवन रखरखाव।
3 जोखिम मूल्यांकन, पूर्वानुमान एवं शोध एवं समुदाय से जुड़कर प्रबंधन के द्वारा भारतीय हिमालय क्षेत्र में मानव-वन्य जीव संघर्ष समाधान तंत्र का विकास।
4 उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय फसलों के जर्मप्लाज्म का संग्रहण, मूल्यांकन एवं संरक्षण तथा सामुदायिक सहभागिता से पूर्वी भारत में पूर्व प्रजन्न को बढ़ावा।
5 उच्च हिमालयी औषधीय और सगंध पदप प्रजातियों के संरक्षण के उद्देश्य से जीन कोष, वंश वृद्धि एवं बाह्य क्षेत्रीय संरक्षण तथा विभिन्न उत्पादकों के बीच जागरूकता पैदा करने हेतु नेचर इंटरप्रिटेशन साईट (एनआईएस) की स्थापना।
6 पर्वतीय गावों के सामाजिक- आर्थिक विकास हेतु सक्किम में हिमालयी जैव विविधता का सतत् प्रयोग विशेषकर यार्चा गुम्बा, चुक, मिहिल (बंगाली नाम) एवं Rhuschinensis हेतु तकनीकी विकास, वैकल्पिक आजीविका एवं संरक्षण।
7 पश्चिमी हिमालय में चयनित राष्ट्रीय उद्यानों के फूलों के मूल्यांकन, पारिस्थितिकी विश्लेषण, पारिस्थितिक तंत्र, सेवाओं, संरक्षण और सतत् प्रबंधन में बहुआयामी अध्ययन।
8  जम्मू कश्मीर के गुरज और तुलियल घाटियों में जैव अपशिष्ट रूपांतरण के लिए शीतरागी केंचुओं का विकास।
9. सहभागी दृष्टिकोण के द्वारा केंद्रीय हिमालय में विभिन्न पारिस्थितिकी प्रणालियों की मृदा कार्बन और नाइट्रोजन अनुक्रमण क्षमता की पहचान , मूल्यांकन और वृद्धि।
10 डीएनए चिन्हीकरण एवं भू-स्थानिक विधि से थुनेर एवं कश्मीरी चिराबेल के संरक्षण हेतु रणनीति बनाना।
11. अरुणांचल प्रदेश में कामेंग नदी तंत्र की मछली-जंतु विविधता, आवास पारिस्थितिकी और उनकी संरक्षण रणनीतियां।
12 पश्चिमी हिमालय में औषधीय पौधों पर पड़ने वाले प्रभावों के सम्बंध में हिमालयी खरगोश की जनसंख्या गतिशीलता और जैव भौगोलिक स्थिति ।
13 उत्तराखण्ड में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में औषधीय एवं सगंध पादपों व अन्य लुप्तप्राय एवं संकटग्रस्त अथवा गैर काष्ठ वन्य प्रजातियों का सर्वेक्षण व मानचित्र विकास। उत्तराखण्ड एल्पाईन इंफार्मेशन सिस्टम (यूके-एआईएस) की स्थापना।
14 सिक्किम हिमालय की तिस्ता घाटी में प्रारंम्भिक वनों में गिरावट और नुकसान को समझना, जैव विविधता व जैव संसाधनों की पुर्नस्थापना एवं प्रबंधन की एक कार्ययोजना।
15 भारतीय हिमालयी क्षेत्र में चीड़ वनों में वनाग्नि काल से पूर्व पारिस्थितिक उत्तराधिकार बढ़ाने और वन उत्पादकता को पुनर्जीवित करने के लिए खेती योग्य सूक्ष्मजीवी जैव स्थल का अध्ययन, संरक्षण और वितरण।
16. जम्मू एवं कश्मीर में ऊपरी चिनाब क्षेत्र में वनस्पति विशमता और बदलते पर्यावरण व भूमि उपयोग का दो विपरीत वृक्षरेखा संक्रमणिका हेतु भूमि उपयोग पद्धति को बदलने के प्रभावों का अध्ययन ।
वित्तीय वर्ष 2016-17
17 पर्वतीय मणिपुर में आर्किड जैव विविधता और जनजातीय आजीविका सुधार का सामुदायिक प्रबंधित संरक्षण।
18 जल विद्युत परियोजनाओं से प्रभावित अलकनंदा-भागीरथी-गंगा नदियों में मछली व जलीय जंतुओं की स्थिति एवं पारिस्थितिकी निगरानी।
वित्तीय वर्ष 2017-18
19 हिमालय में आक्रामक विदेशी प्रजाति के पौधों की स्थिति, पारिस्थितिकी प्रभाव और प्रबंधन।
20. भारतीय हिमालयी क्षेत्र में दीर्घकालिक निगरानी और क्षमता विकास के द्वारा संकटग्रस्त कशेरुकी जीवों का संरक्षण।
21 भारतीय हिमालयी क्षेत्र में संकटग्रस्त पौधों की पुनः स्थापना एवं क्षमता निर्माण।
22 सिक्किम हिमालय के दार्जिलिंग क्षेत्र के सामाजिक पारिस्थितिक भू-क्षेत्र में , प्रमुख पारिस्थितिक सेवाएंे, जैव विविधता तत्वः प्रबंधन, नीतिगत सलाह, प्रबंधन एवं पर्वतीय जैवविविधता सूचना तंत्र विकसित करना।
23 व्यवस्थित खोज, उत्तर पूर्व भारत एवं मणिपुर के हिमालयी सीमा में स्थानीय लोगों की आजीविका के अवसरों को बढ़ाने के लिए रूपरेखा बनाते हुए आणिविक सूचीकरण पद्धति से खाने योग्य कीटों का सतत् प्रबंधन।
24 पर्यावरणीय अनिश्चितताओं के बीच हिमालयी पारिस्थितिकीय तंत्र एवं उसकी मूल्यवान पौध प्रजातियों की अस्पष्ट परिभाषाओं के लिए उच्च वर्णक्रमीय चित्रण।
25 एक सहभागी दृश्टिकोणः पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में संकटग्रस्त पौध प्रजातियों के संरक्षण को प्रोत्साहन।
26 नागालैण्ड के जंगली मूसा का सूचीकरण, कुछ वाणिज्यिक रूप से सबल जीवन शक्ति वाली प्रजातियों का पोषण आंकलन एवं क्लोन उत्पादन।
27 अरूणांचल प्रदेश में तिरप व तीसा नदी में पर्यावरणीय स्थिति तथा मत्स्य जीव विविधता का आॅकलन। सहभागी दृश्टिकोण से मत्स्य आधारित वैकल्पिक आजीविका अवसरों को प्रोत्साहन।
28 दम्पा टाइगर रिजर्व क्षेत्र मिजोरम में खेती को स्थानांतरित करने के पश्चात आई अनुक्रम प्रवणता व उसके संरक्षण हेतु शिक्षा व जागरूकता व स्थानिक पौधों, पक्षियों, स्तनधारियों और सरीसृपों के साथ प्रजातियों की संरचना एवं वृद्धि की निगरानी एवं मूल्यांकन।
29 जैव विविधता संरक्षण हेतु मुख्यधारा के दृश्टिकोण का विकास, भारत के पवित्र कैलाश क्षेत्र में उन्नत आजीविका और आदर्श पारिस्थितिक तंत्र की स्थापना।
30 पारिस्थितिकी तंत्र एवं सेवाओं में सुधार हेतु असम रिजर्व वन क्षेत्र पारिस्थितिकी में कार्बन संग्रहण एवं उत्सर्जन क्षमता का अध्ययन एवं कार्बन संग्रहण का क्षेत्रीय मानचित्रण,
31 उत्तरपूर्वी भारत के हिमालयी पारिस्थितिकीय तंत्र में प्रमुख परागणकों के रूप में पतंगों का आंकलन।
32 जलवायु परिवर्तन परिप्रेक्ष्यः भारतीय पार हिमालयी क्षेत्र में सामुदायिक भागीदारी के द्वारा पारगणकों के आंकलन और संरक्षण परम्पराएं।
33 क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में कुछ संकटग्रस्त पौधों की पारिस्थितिकी निगरानी, पुनःस्थापना एवं जैव प्रसंस्करण।
34 वनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए उत्तरपूर्वी राज्यों में जीव संसाधनों पर वनाग्नि के प्रभावों का अध्ययन।
35 मेघालय में सामुदायिक संरक्षित क्षेत्रों और उनके संरक्षण मूल्यों के आॅकलन का निरूपण।
36 हिमालयी उत्तराखण्ड में शैवाल प्रजाति का एक डीएनए बारकोडिंग एवं सशक्त जैव रासायनिक वर्गिकी वनस्पति संग्रहालय की स्थापना एवं शैवाल जैव विविधता के निरूपण, संरक्षण हेतु संसाधन समूहों का विकास।
37 हिमालय की उच्च क्षेत्री वृक्षरेखा की प्रकृति को समझना एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के आॅकलन से जोड़ते हुए पारिस्थितिक और परिदृश्य अध्ययन ।
38 जम्मू कश्मीर और लद्दाख के पर्वतीय क्षेत्रों के महत्वपूर्ण अनुवांशिक संसाधनों का संग्रह, नाम निर्धारण, संरक्षण और उपयोग।
39 सूक्ष्मजीवी अंतः पादप और मृदा एंजाईम को जलवायु प्रतिरोधक सूचकांक मानते हुए हिमालय भोजपत्र के सम्मानः गंभीर रूप से लुप्तप्राय वृक्षरेखा वाली प्रजाति।
40 वास्तविक हरियाली की पुर्नस्थापनाः सामुदायिक भागीदारी के द्वारा आक्रामक प्रजातियों को खत्म करना और पारिस्थितिकीय तंत्र को बहाल करना।

2020 तक मापकीय लक्ष्य

सभी 12 भारतीय हिमालयी राज्यों पर केंद्रित। पर्वतीय जैव विविधता सूचना एवं डेटाबेस तंत्र (एमबीडीआईएस) की स्थापना प्रस्तावित।
राज्य जैव विविधता बोर्ड एवं बायोस्फेयर रिजर्व को शामिल कर पारिस्थितिक तंत्र की बेहतरी एवं समग्र विकास के लिए संभावित क्षमता का आंकलन ।
12 राज्यों में राज्य जैव विविधता बोर्ड और बायोस्फेयर रिजर्व योजना के द्वारा संरक्षण नीति ढांचे से समग्रता की रूपरेखा को जोड़ना।
राज्य में संस्थागत सहयोगियों के साथ मिलकर संकटग्रस्त प्रजातियों की पुर्नःबहाली को बढ़ावा देना।
संरक्षणीय शिक्षा के द्वारा बाह्य पहुंच को बढ़ाना।


संपूर्ण निगरानी सूचक

भू-स्थानिक डेटाबेस को विकसित करना (समय श्रृंखला आॅकडे- क्षेत्रों और जातियों की संख्या सहित)
दीर्घकालिक निगरानी हेतु स्थापित क्षेत्रों की संख्या।
ज्ञान उत्पादों का विकास एवं प्रकाशन (संख्या)।
o वृक्षरेखा में परिवर्तन दिखाते हुए डिजिटल मानचित्र (समय श्रृंखला के साथ संख्या)
विकसित की गई जलवायु परिवर्तन अनुरूप संरक्षण प्रारूपों की संख्या।
प्रशिक्षित सामुदायिक समूहों की संख्या।
जागरूकता शिविरों/आयोजित कार्यक्रमों की संख्या।
उत्पन्न डेटाबेस (प्रजातियों की समृद्धि द्वारा प्रमाणित वर्गीकृत विविधता पर आॅकड़े, साथ ही समृद्धि, एकरूपता, विविधता, एवं उत्पत्ति एवं परिवार स्तर /क्षेत्रों की दुर्लभता।
प्रजातियों की आबादी में परिवर्तन को ज्ञात करने हेतु राश्ट्रीय उद्यानों की आॅकलन रिपोर्टों की संख्या।
परियोजना कार्य से सम्बंधित प्रकाशनों से इतर प्रारूप एवं ज्ञान उत्पादों का विकास। (संख्या)
मानकीकृत प्रचार तकनीकों की संख्या।
स्थापित मूल्य श्रृंखलाऐं। (लाभार्थियों की संख्या)
पारंम्परिक फसलों/नस्लीय विकास (प्रजातियों की संख्या/नस्लों) का डेटाबेस।
स्थलीय संरक्षण क्षेत्रों/प्रारूपों की संख्या।
प्रशिक्षित कृषकों/सामुदायिक समूहों की संख्या।
आय संवर्धन (रुपया/प्रति व्यक्ति/प्रतिशत) में।
प्रकाशित ज्ञान उत्पादों की संख्या।
प्रदेय

प्रतिनिधि वर्गीकरण केंद्रित 6 क्षेत्रों के आधारभूत भू-स्थानिक एवं आनुवांशिक डेटाबेस का विकास। संकटग्रस्त, आक्रामक बाह्य प्रजातियों पर केंद्रित ।
चयनित क्षेत्रों में जैव विविधता संरक्षण की प्राथमिकता के लिए वर्गीकरण सूचक की पहचान।
हिमालय के 6 क्षेत्रों में पारिस्थितिक तंत्र एवं आवास प्रवणता में दीर्घकालिक निगरानी क्षेत्रों की स्थापना।
12 भारतीय हिमालयी राज्यों में स्थानीय हितधारकों की क्षमता निर्माण।
जम्मू कश्मीर, सिक्किम, उत्तराखण्ड में तीन प्रमुख स्थलों में वृक्षारोपण विज्ञान, मृदा, वृक्ष के पानी से सम्बंधों पर डेटाबेस और ज्ञान उत्पादों का निर्माण।
एक विशेष संरक्षण इकाई के रूप में विशयगत मानचित्रों और वृक्षरेखा के पारिस्थितिक तंत्र के डेटाबेस से बनी उन्नत समझ और आजीविका में वृद्वि का आशय एवं सतत् प्रबंधन ।
जलवायु परिवर्तन और मानव उपयोग के साथ-साथ वृक्षरेखा में आगामी परिवर्तनों पर समझ का विकास।
विकसित आजीविका हेतु संसाधों के सतत् उपयोग के लिए जागरूकता और प्रशिक्षण सामग्री, ज्ञान उत्पाद।
पारंपरिक फसलों पर डेटाबेस और ज्ञान उत्पादों का विकास।
खेतों में जर्मप्लाज्म और स्थलीय संरक्षण हेतु प्रारंभिक परिणाममूलक प्रारूप की स्थापना।
15 लाख पौधे विकसित कर उनकी वंश वृद्धि एवं प्रसार (न्यूनतम 15 लाख पौध/चयनित औषधीय पौधों के प्रजनक)
पारिस्थितिकीय उन्नत प्रारूप विधियों का विकास।
दुर्लभ, संकटग्रस्त और औशधीय पौधों की प्रजातियों के साथ इस क्षेत्र के वनस्पति को संरक्षित करने के लिए प्रारूप प्रबंधन प्रथाऐं।
अनेक आर्थिक एवं बागवानी रूप से संभावित प्रजातियों के पूर्व संरक्षण और कृशिकरण प्रारूप।
वर्तमान आपदा और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए वनस्पति, पौधों की विविधता का संरक्षण एवं इन प्रजातियों के मूल्यांकन और उपलब्धता का दस्तावेजीकरण।
राष्ट्रीय उद्यानों में उपलब्ध पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का दस्तावेजीकरण।
भारतीय हिमालयी क्षेत्र के 12 राज्यों में प्रकृति अध्ययन केंद्रों के साथ जुड़ने वाले शैक्षिक संस्थानों में संवेदनशीलता/ प्रेरणा।

उपलब्धियां आज तक ...

सिक्किम में असमिया सेब की प्रजातियों हेतु 1 आवास उपयुक्ता प्रारूप।
उत्तराखण्ड में स्थलीय संरक्षण हेतु 1 मास्टर प्लान प्रदर्शन स्थल।
5 उच्च क्षेत्रीय मास्टर प्लान मानकीकृत प्रचार रूपरेखा। (30318 पादपकों का उत्पादन)
खानों से अम्लीय निकासी हेतु एक वैकल्पिक प्रारूप शुरू किया गया।
हिमांचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, आंध्रप्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में दीर्घकालिक निगरानी क्षेत्रों की स्थापना की गई।
सिक्किम में 3 पूर्व अतः स्थलीय संरक्षण क्षेत्रों का विकास।
हिमांचल प्रदेश, उत्तराखण्ड सिक्किम, आंध्रदेश और पश्चिम बंगाल में जीव अध्ययन हेतु 80 नमूनाकरण साईटें।
जम्मू कश्मीर, उत्तराखण्ड सिक्किम, और पश्चिम बंगाल में 12 प्रशिक्षण कार्यक्रम (568 प्रतिभागी)।
हिमांचल प्रदेश में दीर्घ कालीन निगरानी पर 1 कार्यशाला का आयोजन। प्रतिभागीय संख्या -53
05 ग्रामीण प्रौद्योगिकियों को अपनाने से 50 परिवार लाभान्वित।
हिमालय वृक्षरेखा की महत्ता पर 02 फ्लायरों का प्रकाशन।
वृक्षरेखा और काष्ठरेखा अध्ययन, वन्य जीव जनसंख्या अनुामन और पुश्प विविधता पर 3 मैनुअलों का प्रकाशन।
5 वृक्ष प्रजातियों पर 1 फिनो क्लेण्डर, 2 पुस्तकें, 3 शोधपत्र एवं 15 पुस्तक अध्यायों का प्रकाशन।
भारतीय हिमालयी राज्यों (हिमांचल प्रदेश, असम, मणीपुर,नागालैण्ड और त्रिपुरा में 05 हिम प्रकृति अध्ययन केंद्रों की स्थापना। )