राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एन.एम.एच.एस)
क्रियांन्वयन- पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार
नोडल एवं सेवा केन्द्र- जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान

वृहद विषयगत क्षेत्र: 7 हानिकारक पदार्थों का संचालन/नियंत्रण


मानव सभ्यता की उन्नति हेतु विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है, किंतु इसे पर्यावरण की कीमत पर हासिल नहीं किया जाना चाहिए। भारतीय हिमालय के कठिन भूगोल वाले राज्यों में वर्तमान में चरम जलवायु एवं मानवीय प्रभावों को महसूस किया गया। ये मानव और पर्यावरण पर नगण्य प्रभाव के साथ सक्रिय रूप से उपयुक्त प्रकार के विकास को समझने और कार्यान्वित करने के लिए एक चेतावनी है। हिमालय पर्यावरण को बचाने के लिए, ठोस और खतरनाक अपशिष्ट से निपटने के लिए विभिन्न रणनीतियों को आमंत्रित किया जा रहा ह। जिसमें 3 आर सिद्धांत (रिड्यूश, रियूज एवं रिसाईकिल) के बुनियादी सिद्धांत पर काम करते हुए इस अपशिष्ट से निपटने की रणरनीति पर काम हो रहा है। जिससे इस खतरनाक अपशिष्ट का न्यूनतम उपयोग हो और इसके प्रदूषण से निपटान हो सके। “खतरनाक अपशिष्ट“ वह पदार्थ है, जो किसी भी भौतिक, रासायनिक, प्रतिक्रियाशील, विषाक्त, ज्वलनशील, विस्फोटक, या संक्षारक विशेषताओं के कारण खतरे का कारण , स्वयं या दूसरे अपशिष्ट पदार्थों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए खतरे का कारण बन सकता है। कई मामलों में, यह खतरनाक अपशिष्ट जोखिमों ज्ञान की कमी और / या उपकरण के असुरक्षित या अनुचित संचालन के साथ-साथ अनुचित कार्य पद्धतियों के कारण है। इसलिए, कचरे को उत्पत्ति से अंतिम निपटान तक इसकी निगरानी और नियंत्रण की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, खतरनाक कचरे के कुशल प्रबंधन और सुरक्षित प्रबंधन को नवीनतम नवाचारों के कौशल और तकनीकों में विशेषज्ञता की भी आवश्यकता होती है, । जिसके कारण क्षेत्र में बेसलाइन डेटा और स्थानीय अनुभवों पर आधारित होते हैं। इसके अलावा, खतरनाक कचरे के बारे में क्षमता निर्माण और जागरूकता कार्यक्रम और इसके सावधानी पूर्वक उपायों को व्यापक रूप से प्रसारित करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत, निम्नलिखित 02 परियोजनाएं चल रही हैं, जो सीधे “हानिकारक पदार्थों के प्रबंधन के प्रमुख मुद्दे को संबोधित कर रही हैं।

आच्छादित भारतीय हिमालयी राज्य -03 (उत्तराखण्ड, मेघालय, असम)

प्रमुख उद्देश्य

उत्तर-पूर्वी राज्यों में कोयला खनन क्षेत्रों की पर्यावरणीय निगरानी और एसिड माईन ड्रेनेज तथा कोयला खानों से प्रभावित दो राज्यों जैसे मेघालय और असम में पर्यावरणीय बहाली हेतु तकनीकी विकास करना।
ऊर्जा एवं बायोमेडिकल अनुप्रयोगों के लिए प्लास्टिक अपशिष्ट से ग्रेफीन का संश्लेषण करना।
विशेष रूप से विकसित की गई बहुद्देशीय भटटी के द्वारा प्लास्टिक कचरे से वाहनों एवं औद्योगिक अनुप्रयोगों हेतु ईधन का संग्रह एवं रूपांतरण करना।
उच्च मानकीय कंकरीट में प्रसंस्कृत अर्द्ध तरल प्लास्टिक का योजक के रूप में उपयोग करना ।
गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा प्लास्टिक के घातक प्रभावों के बारे में परियोजना क्षेत्रों के समुदायों के बीच जागरूकता आयोजित करना।

संचालित परियोजनाएं: 2 ( वृहद अनुदान-01 एवं मध्यम अनुदान- 01)

वित्तीय वर्ष 2015-16
1 उत्तर-पूर्वी भारत में प्रौद्योगिकी विकास, प्रबंधन और स्थानांतरण खेती और कोलया खनन की दीर्घकालिक निगरानी।
2 हिमालयी क्षेत्र में फैले घातक प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन हेतु पर्यावरणयीय सतत् संश्लेषण पद्धति से कार्बन नैनो पदार्थ से मूल्य वर्धित ईंधन का विकास साथ ही कंकरीट हेतु अनुपूरक का उत्पादन।

2020 तक मापकीय लक्ष्य



संपूर्ण निगरानी सूचक

हिमालय क्षेत्र में हानिप्रद कचरा प्रबंधन के नवीन प्रारूपों की संख्या।
नीतिगत प्रारूपों एवं अन्य ज्ञान उत्पादों का विकास।
लाभान्वित हितधारकों की संख्या (ग्रामीण युवाओं की संख्या, महिलाओं की संख्या, कुल लाभार्थी )
आयोजित क्षमता वर्धन कार्यक्रमों की संख्या।
प्रदेय

खानों से अम्लीय प्रवाह हेतु वैल्पिक प्रारूप विकास।
न्यूनतम लागत मेंकार्बन नैनो कणों का संश्लेषण , मूल्य वर्धित ईंधन एवं कंक्रीट।
प्रतिदिन संसाधित ठोस कचरे की मात्रा।
नगरपालिका एवं सामुदायिक समूहों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
10 जागरूकता शिविर/कार्यक्रमों का आयोजन होगा।
उपलब्धियां आज तक ...

तीन चयनित क्षेत्रों में खदान अम्लीय प्रवाह हेतु वैकल्पिक विकास प्रारूप शुरू किया गया। मेघालय के मावबलंाग एवं खूलिया, बट्ट गाॅव अरुणांचल प्रदेश।
बड़ी मात्रा में ग्रेफीन एवं ग्रेफीन आक्साइड चादरों के उत्पादन हेतु पुनर्संसाधन मशीन स्वयंभू-डब्लूआरएम-2021 को स्थापित किया गया ।
प्रायोगिक स्तर पर उच्च मानकीय कंक्रीट के योजक हेतु द्वितीय स्तर के प्लास्टिक (अर्द्ध तरल प्लास्टिक) के उपयोग के लिए अभिनव प्रौद्योगिकी विकसित की गई।
अपशिष्ट प्लास्टिक से ग्राफीन निर्माण की प्रक्रिया पर एक पेटेंट की प्रक्रिया संचालित।
नैनीताल एवं पिथौरागढ़ जनपदों में प्लास्टिक जागरूकता अभियान पर 15 जागरूकता कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैं।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर तीन कार्यशालाओं का आयोजन किया गया।