राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एन.एम.एच.एस)
क्रियांन्वयन- पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार
नोडल एवं सेवा केन्द्र- जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान

वृहद विषयगत क्षेत्र:१ जल संसाधन प्रबंधन



भारत हिमालयी क्षेत्र में जल संसाधन प्रबंधन का महत्व

हिमालय को “एशिया का जल स्तंभ’ की मान्यता है। इस कारण यह एशिया की प्रमुख नदियों और वहां रहने वाले लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यद्पि मौजूदा परिदृश्य में उपलब्ध जल संसाधन जलवायु परिवर्तन और अन्य वैश्विक कारकों के कारण गंभीर दबाव में हैं। जलवायु परिवर्तन वर्षा पद्धति, मृदा नमी, आद्र्रता, हिमनद-द्रव्यमान संतुलन और नदी के प्रवाह को बदलता है, और भूमिगत जल स्रोतों में भी परिवर्तन का कारण बनता है। साथ ही, बाढ़ और सूखे की आवृत्ति, तीव्रता और प्रभाव बढ़ रहे हैं। दूसरी ओर, अभूतपूर्व आबादी में वृद्धि, तेजी से शहरीकरण, बुनियादी ढांचे का विस्तार, पलायन, भूमि रूपांतरण और अपशिष्ट एवं प्रदूषण प्रवाह, मार्ग और पानी के भंडार जल संसाधनों पर और दबाव पैदा करेगा जो प्राकृति वातावरण पर गहरा दबाव पड़ेगा। भारतीय हिमालय क्षेत्र (आईएचआर), हिमालय के एक भाग के रूप में इसके झीलों, नदी और हिमनदों में भारी जल संसाधन हैं, हालांकि अभी तक खतरे में हैं। यहां बदलती बारिश, लंबे समय तक सूखे, उतार-चढ़ाव वाले तापमान, बाढ सहित निरंतर और गंभीर मौसम की घटनाओं, जल विद्युत उत्पादन, वन क्षेत्र में गिरावट और अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण भी हो सकता है। यह सब हिमालय के जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए योजना बनाने महत्ता को रेखांकित करता है। मिशन के तहत वृहद विषय क्षेत्रों के अंतर्गत 12 मांग आधारित शोध अध्ययन कार्य संचालित हैं, जो पहाड़ियों के जल स्रोत्तो और धाराओं को पुनर्जीवित करने पर केंद्रित हैं, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की गतिशीलता, जल निकायों की जल गुणवत्ता और पारिस्थितिकीय एकता का आकलन करने के लिए निगरानी साइटों की स्थापना, उच्च क्षेत्रों में मौसम संबंधी विश्लेषण , निर्णय समर्थन प्रणाली (डीएसएस) विकसित करना और हिमालय क्षेत्र जल जनित आपदाओं जो बर्फ आधारित व भू-स्खलन से बनी झीलों के विस्फोट से सम्बद्ध है , के साथ जल संसाधन प्रबंधन से लक्ष्य हासिल करना है।

IHR States and UT Covered-07: (Jammu & Kashmir, Himachal Pradesh, Uttarakhand, Arunachal Pradesh, Sikkim, Manipur and Tripura)

प्रमुख उद्देश्य

भूमिगत जल में वृद्धि-सहभागी दृष्टिकोण से प्रारूप विकास करना।
जलीय प्रक्रियाओं की गणना करना।
6 भारतीय हिमालीय राज्यों उत्तराखण्ड, हिमांचलप्रदेश, सिक्किम, पश्चिम बंगाल , नागालैण्ड और अरुणांचल प्रदेश में 1000 जल स्रोत्तों और जल धाराओं का सूचीकरण और मानचित्रण करना।
वर्ष 2100 तक क्षेत्रीय पर्यावरण परिवर्तन परिदृश्य में परिवर्तन करना।
भूमि उपयोग के तौर तरीकों और जल उपयोग से इसे जोड़ने के लिए नीतिगत संस्तुतियां।
भारतीय हिमालय क्षेत्र में चयनित राज्यों में जल संसाधन प्रबंधन अभ्यास।
उत्तराखण्ड के 5 गाॅवों में 5 कूप कुओं का निर्माण। उचित उपचार की व्यवस्था के साथ जल आपूर्ति का बुनियादी ढांचा बनाना।
ग्रामीण परिस्थिति हेतु यांत्रिक चलित विद्युत अपघटनीय उपयोग युक्त प्राकृतिक रिवर बैंक फिल्ट्रेशन तकनीकों का प्रदर्शन।
गंगटोक और शिलांग दो शहरों के लिए 1 अनुपात 4000 के पैमाने पर स्थलाकृतिक मानचित्रों का विकास।
गढ़वाल हिमालय में बीती शताब्दी में बाढ़ और मलबे के प्रवाह से प्रभावित प्रमुख जलग्रह क्षेत्रों का भू-आकृतिक निरूपण एवं सहसम्बंधों का अध्ययन करना।
नदी समग्रता में मौसमी व्यवहार, जल विद्युत परियोजनाओं, भूमि उपयोग पद्धतियों का प्रभाव एवं मूल्यांकन करना।
भौगोलिक सूचना तंत्र पर आधारित निर्णय निर्माण प्रणाली का विकास।
बर्फ आधारित झील विस्फोट एवं भू-स्खलन आधारित झील विस्फोट उन्नयन प्रक्रिया के लिए उत्तरदायी भू-आकृतिक कारकों की पहचान।
अतिरिक्त खनिज के साथ सस्ती जल शोधन प्रणाली का विकास करना।
हितधारकों की जागरूकता संवर्धन एवं क्षमता विकास।

संचालित परियोजनाएं- १२ (वृहद अनुदान- २, मध्यम अनुदान-४, लघु अनुदान-६ ) वित्तीय वर्ष २०१५-१६

वित्तीय वर्ष २०१५-१६
1 मध्य हिमालयी घाटियों में संरक्षणीय सिद्धांत पर जल स्रोत्तों का जीर्णोंद्धार एवं इसपर अधारित धाराओं का संरक्षण
2 परिवर्तनीय पर्यावरणीय परिदृश्य में हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र की गतिशीलता
3 भारतीय हिमालयी क्षेत्र में विभिन्न पारिस्थितिकीय तंत्रों में मानवजनित प्रभाव एवं उनका प्रबंधन
4 गढ़वाल के हिमालयी क्षेत्र में बाढ़ एवं ऊपरी गंगा भाग में वृहद क्षरण का भू-आकृतिक निरूपण: भू-आकृति परिवर्तन प्रक्रियाओं में पर्यावरणीय-टेक्टोनिक मिलाप की भूमिका
5 सामुदायिक सहभागिता, नदीतटों पर जल निष्पंदन एवं प्रभावी किटाणुरोधी प्रणाली से हिमालयी उत्तराखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों हेतु पेयजल सुरक्षा
6 जीआईएस के द्वारा आपदारोधी कार्ययोजना निर्माण करना एवं शिलांग एवं गंगटोक के नगरीय समुदायों के बीच आपदा न्यूनीकरण के कार्यों को प्राथमिकता देना

7 भारतीय हिमालय में दो चयनित नदी घाटियों के प्रभावी उपचार और सतत् जल प्रबंधन हेतु वैकल्पिक रणनीति बनाने और प्रयोग के लिए एकीकृत गतिशील प्रणाली प्रारूप

8 भारतीय हिमालय क्षेत्र में जल सुरक्षा हेतु समुदाय आधारित जलश्रेत्र विकास

9 भारतीय हिमालय क्षेत्र के सिक्किम एवं पश्चिम बंगाल में पेयजल सुरक्षा हेतु नवीन एवं सतत् निर्णय सहयोग प्रणाली

10 सिक्किम के पूर्वी और पश्चिम जिले में चुंबुग और दुगा विकासखण्डों और पश्चिम बंगाल के कलिंपोन्ग जिले के चिबोपाॅसियर क्षेत्रों में में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों द्वारा जल स्रोत्तों और सम्बंधित क्षेत्रों में धारा विकास तथा सूख रही जल धाराओं का जीर्णोद्धार

11 हिमांचल प्रदेश में जलविद्युत क्षेत्रों एवं संकटमय हिमनद झीलों के सतत् जल प्रबंधन हेतु चिन्हीकरण

12 हिमालय क्षेत्र हेतु खनिज युक्त कम लागत वाली जल शोधन प्रणाली का विकास


2020 तक मापकीय लक्ष्य

सभी 12 भारतीय हिमालयी राज्यों में हिमालयी जल स्रोत्तों के पुनर्जीवन के लिए राज्यवार एक कार्यक्रम की शुरूआत।
भारतीय हिमालय क्षेत्र में चयनित 8 राज्यों में पर्वतीय जलस्रोत्तों का सूची विकास।
स्थानीय स्तर पर वाटरशेड योजना।
चयनित जलस्रोत्तों, झीलों व नदियों की पानी की गुणवत्ता व पारिस्थितिकीय एकता की निगरानी।
चार राज्यों में उच्च घाटियों से मौसम और उच्च जलवायु घटनाओं का डेटाबेस।
पानी से प्रेरित आपदाओं की भविष्यवाणी के लिए निगरानी एवं प्रतिरूपण।
जल संसाधन प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण एवं क्षमता विकास ।



संपूर्ण निगरानी सूचक

लक्षित भारतीय हिमालयी राज्यों में जलस्रोत्तों एवं पुनर्जीवित धाराओं की सूची संख्या
विकास एवं कार्यान्वित जलस्रोत्त पुनर्जीवन प्रारूपों की संख्या
हिमालयी वाटरसेड हेतु परिक्षण में अथवा अनुकूलित तंत्र गतिशील प्रारूपों की संख्या
जीआईएस आधारित विकसित निर्णय सहयोग प्रणाली (डीएसएस) की संख्या
लाभान्वित हितधारकों की संख्या
जल की गुणवत्ता व मात्रा पर तैयार नए डेटाबेस व डेटासेट की संख्या
विधायी प्रक्रिया हेतु तैयार और भेजी गई नीतिगत निर्देशों की संख्या
जल संसाधन प्रबंधन की सर्वोत्तम प्रथाओं प्रकाशित/उत्पादित ज्ञान सामग्री

प्रदेय

1000 से अधिक जल धाराओं का सूचीकरण किया गया।
(16) धारा मुहानों और धाराओं का उपचार कार्य पूर्ण।
6 धारा पुनरूद्धार प्रारूपों का विकास एवं कार्यान्वयन
उत्तराखण्ड में प्रभावी जल आवंटन रणनीति हेतु 3 डीएसएसएस तकनीकों का विकास। दक्षिण सिक्किम और दार्जिलिंग में जीआईएस आधारित जल आपूर्ति प्रणाली तथा प्रभावी उपचार योजना के साथ गतिशील प्रणाली वाले जीआईएस युक्त सतत् जल प्रबंधन प्रणाली का विकास।
5 भारतीय हिमालयी राज्यों में 125 सीमांत कृषकों का क्षमता विकास।
जल प्रबंधन के 8 उल्लेखनीय कार्यों का दस्तावेजीकरण।
ज्ञान उत्पादों का विकास: नीतिगत संस्तुतियां-06, शोध पत्र -20, पुस्तक अध्याय-10, संग्रहालय एवं मोनोग्राफ -10
5 प्रकार के डाटाबेस की स्थापना- जिसमें जलस्रोत्त, नदीयां, झील, व घरों में पेयजल गुणवता, जीआईएस मानचित्र, आरबीटी तकनीक, नदी जैव विविधता, एवं जल-मौसम विज्ञान सम्बधी।

उपलब्धियां अब तक - ...
हिमालयी राज्यों में जल सुरक्षा हेतु एक वृहद स्प्रिंग रेज्यूविनेशन ‘जल अभ्यारण्य अभियान शुरू किया गया। इसमें 11 हिमालयी राज्यो और 01 कंेद्र शाासित प्रदेश के साथ नीति आयोग द्वारा निर्धारित 12 जिले जिसमें 09 महत्वाकंाक्षी जिले सम्मिलित हैं।
05 हिमालयी राज्यों में 3602 पर्वतीय जलस्रोतों का सूचीकरण जिसमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, नागालैण्ड, अरूणांचल प्रदेश और सिक्किम शामिल है।
सिक्किम में एक गांव हेतु ग्रामीण जल सुरक्षा योजना तैयार।
जम्मू और कश्मीर तथा उत्तराखण्ड हेतु जल मांग आधारित डिसिजन स्पोर्ट सिस्टम (निर्णय समर्थन प्रणाली) पर कार्य जारी।
उत्तराखण्ड में 05 नदी तट निस्पंदन प्रारूपों का विकास एवं कूपवेल स्थापित। यहां प्राकृतिक विधि से रोगणु और गंदगी मुक्त पूर्व उपचारित पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। (लाभार्थी 3600)
उत्तराखण्ड में 12 गांवों की जल सुरक्षा हेतु जलटैंकों के विस्तार का प्रारूप (10हजार क्षमता वाले 322 जल टैंकों की स्थापना )
हिमाचल प्रदेश में कम लागत वाले त्वरित जल शोधकों का विकास। (रिजन रिवर्स ऑस्मोसिस/परासरण और अल्ट्रावायलेट व खनिज आपूर्ति प्रणाली युक्त)
भू-स्थानिक तकनीकों और जलविज्ञान प्रारूपों के आधार पर हिमाचल प्रदेश में छोटी पनबिजली परियोजनाओं हेतु संभावन क्षेत्रों का डेटाबेस तैयार किया गया।
ऊॅचाई, औसत वर्षा, तापमान परिवर्तन निगरानी पर आधारित उत्तराखण्ड में प्राकृतिक खतरों और आपदाओं की संभावनाओं के प्रारूपों का विकास।
उत्तराखण्ड में कम लागत वाली पूर्व भू-स्खलन चेतावनी प्रणाली का विकास
उत्तरपूर्व शहरों सिक्किम के गंगटोक और मेघालय के सिलांग हेतु 02 आपदा तन्यकता योजनाओं का विकास।