Broad Thematic Area 4: Skill Development and Capacity Building
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भारतीय हिमालयी क्षेत्र दुनियां में सर्वाधिक संवेदनशील और जटिल पारिस्थितिक तंत्र के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र के अधिकांश लोग कृषि और जुड़ी गतिविधियों में लगे हुए हैं। यहां कुल श्रमशील लोगों में से लगभग 70 प्रतिशत (85 प्रतिशत महिलाएं) शामिल हैं। जिनमें वे आज न तो आर्थिक रूप से अधिक आय उत्पन्न करने में सक्षम हैं और न ही कृषि बाह्य रोजगार अवसरों को पाने में सक्षम हैं। इसलिए, स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण संरक्षण के कुशल प्रबंधन से आजीविका सुरक्षा और सतत् खाद्य उत्पादन प्राप्त करना सदैव भारतीय हिमालयी राज्यों में चुनौतीपूर्ण रहा है। इस क्षेत्र में आर्थिक विकास के सीमित अवसरों के कारण, विशेष रूप से हिमालयी ग्रामीण युवा देश के अन्य हिस्सों में आजीविका और रोजगार के लिए पलायन कर रहा है। पलायन की मौजूदा दर को कम करने के लिए, एक ओर विविध जैव संसाधनों का सतत् उपयोग करने एवं दूसरी ओर विभिन्न प्रौद्योगिकी हस्तक्षेपों द्वारा भूमि विविधता पर आधारित क्षमता वर्धक और रोजगार सृजक , आजीविका उत्पन्न कर वैकल्पिक आय सृजन करने वाले दृष्टिकोणों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
इसके संदर्भ में, राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र में मानव संसाधन विकास पर केंद्रित 8 परियोजनाऐं स्वीकृत की है। जिनका उद्देश्य इस क्षेत्र के विभिन्न हितधारकों के लिए कार्रवाई-केंद्रित गतिविधियों या विकास ज्ञान के निष्पादन के माध्यम से मानव संसाधन विकास को आगे बढ़ाना है। इस वृहद विशयगत क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य भारतीय हिमालयी क्षेत्र के लोगों की जागरूकता और क्षमता निर्माण में सुधार के लिए कौशल वृद्धि के माध्यम से उचित ग्रामीण प्रौद्योगिकियों को मजबूत और प्रसारित करना है। इस वृहद विशय क्षेत्र की मुख्य पहचान, कार्य के विशयगत क्षेत्र (टीएडब्लू) निम्न हैं- (1) शिक्षा, जागरूकता और पहुंच के लिए विकल्प और (2) मानव क्षमता निर्माण सहित सूक्ष्म उपक्रमों और हरित प्रौद्योगिकियों के प्रचार ।
परियोजन अंतर्गत भारतीय हिमालयी राज्य- समस्त 12 राज्य
प्रमुख उद्देश्य
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वनों, कृषि भूमि, भूजल रिचार्ज, पालतू पशुओं और लोगों (संलग्न मापांक देखें) के प्रासंगिक मानकों की निगरानी कर अच्छे और लचीले पारिस्थितिक तंत्र की अवधारणाओं में सैद्धांतिक और व्यावहारिक अंतर्दृष्टि विकसित करना। |
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पलायन को कम करने हेतु पूरक ग्रामीण आजीविका, समुदाय आधारित संगठनों , गांव समूहों, विशेष रूप से महिलाओं के साथ मिलकर प्रगति को निरंतर देख रहे हैं। |
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भारतीय हिमालय राज्यों में युवा शोधकर्ताओं के मंच को संचालित और प्रोत्साहित करना। |
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सतत विकास में जलवायु परिवर्तन को जोड़ने वाले सर्वोत्तम कार्यों का संग्रह विकसित करना। |
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जागरूकता, क्षेत्रीय विद्याओं और सर्वोत्तम प्रथाओं को आगे बढ़ाना और पहाडी़ राज्यों में वृद्धि के तरीकों की पहचान करने के लिए हितधारकों की क्षमता का निर्माण। |
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भारत सरकार में भारतीय हिमालयी राज्यों में हिमालय केंद्रित नीतियों और विकास योजनाओं को अपनाने के लिए पैरवी करना। |
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प्राकृतिक संसाधनों के सतत् प्रबंधन, पारिस्थितिक तंत्र आधारित आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन और अभिनव और सहज आजीविकास विकल्प के क्षेत्र में प्रशासनिक अकादमी, राज्य ग्राम्य विकास संस्थान, वन शोध संस्थानों जैसे प्रासंगिक संस्थानों को सुदृढ़ कर क्षमता विकास। |
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भारतीय हिमालयी में परियोजना संचालित राज्यों में स्थापित डेटाबेस केंद्रों के संचालन को सुदृढ़ करने एवं प्रभावी समन्वय हेतु एक कार्ययोजना बनाना। पर्यावरण परिवर्तन सम्बंधी व्यापक, सरल उपयोगी सूचना प्रणाली का प्रबंधन और आदान प्रदान करना। आपदा जोखिम न्यूनीकरण तत्परता एवं प्रबध्ंान, जैव विविधता संरक्षण व प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन , परम्परागत तंत्र एवं वैकल्पिक/पूरक आजीविका विकल्प देना आदि। |
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आद्र पारिस्थितिक तंत्र भूमि के अधिकतम प्रयोग को प्रोत्साहन एवं उसका सतत् प्रबंधन ,सामुदायिक सहभागिता से इसका संरक्षण एवं बहाली करना। |
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कम लागत वाली बांस संरक्षण प्रौद्योगिकी पर पहाड़ी समुदायों का कौशल विकास और क्षमता निर्माण करना। |
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बांस उपचार केंद्रों की स्थापना कर आजीविका-पर्यावरण केंद्राभिमुख प्रारूपों के सहभागी प्रबंधन के माध्यम से पहाड़ी समुदायों के लिए उद्यमिता विकास करना। |
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आपदा जोखिम न्यूनीकरण और पहाड़ी समुदायों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान करना। |
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प्रभाव विश्लेषण और प्रक्रिया दस्तावेजीकरण करना। |
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कृषि आधारित उद्यमों के माध्यम से 100 उत्पादकों की आय में वृद्धि करना। |
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कृषि आधारित उद्यमों का प्रबंधन करने के लिए 200 उत्पादकों के ज्ञान, दृष्टिकोण और कौशल का निर्माण करना। |
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कृषि आधारित उद्यमों को संचालित और प्रबंधित करने के लिए उद्यमिता समूहों लक्ष्य सहकारी समिति की क्षमता वृद्धि करना। |
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संचालित परियोजनाएं- 8
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वित्तीय वर्ष 2016-17
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1 |
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए पर्वतीय लोगों के दृष्टिकोण और प्रथाओं को समझनाः नवीनीकरण और सुधार के लिए अनुसंधान। |
2 |
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में सहज और लचीला ग्रामीण पारिस्थितिक तंत्र वाले समुदाय बनाना। |
3 |
जलवायु परिवर्तन के समक्ष जटिल आपदाओं के प्रबंधन के लिए क्षमता निर्माण रणनीतियां। |
4 |
हिमालयी राज्यों में कार्यकर्ताओं और समुदायों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए राज्य प्रशिक्षण संस्थानों को सुदृढ़ बनाना। |
5 |
त्रिपुरा के रुद्रसागर झील में सामुदायिक भागीदारी द्वारा पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं की बहाली। |
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त्रिपुरा के पर्वतीय क्षेत्रों में भूकंप रोधी भवन और संरचनाओं को बढ़ावा देने के लिए बांस उपचार तकनीकों पर क्षमता निर्माण।
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7 |
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रो ं में उच्च मूल्य-कम क्षेत्रफल आधारित फसलों के उद्यमों का प्रचार।
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वित्तीय वर्ष 2017-18
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8 |
सिक्किम में जैविक उत्पादकों की आजीविका हेतु स्थानीय फसलों के जर्मप्लाज्म का संरक्षण, संवर्धन और गहनता। |
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2020 तक मापकीय लक्ष्य
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o कौशल वृद्धि के माध्यम से सुयोग्य ग्रामीण प्रौद्योगिकियों के वितरण प्रणाली को सुदृढ़ करना। |
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10000 विशेष रूप से सीमांत और निर्धन कमजोर वर्गों के किसानों, लिए अधिक, उन्नत और वैकल्पिक आजीविका विकल्प। |
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9 राज्यों में गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान और सहयोगी संस्थानों के क्षेत्रीय केंद्रों में ग्रामीण तकनीकी केंद्रों की स्थापना। |
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बेहतर आजीविका के लिए 120 सफल विकल्पों / प्रौद्योगिकियों व विकल्पों को अपनाना। |
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एकीकृत पर्यावरण विकास अनुसंधान कार्यक्रम को सहयोग। |
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बेहतर आजीविका के लिए भूमि प्रबंधन तरीकों का विकास। |
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पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान और प्रथाओं को दस्तावेज और मूल्यांकन करना।
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भारतीय हिमालयी राज्यों से 4 विषयगत क्षेत्रों में स्थानीय ज्ञान प्रणाली पर डाटाबेस , तथा बौद्धिक संपदा अधिकार की संभावना तलाशना।
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भारतीय हिमालयी राज्यों से 24 महत्वपूर्ण पारंपरिक प्रथाओं और ज्ञान को सुदृढ़ बनाना और बढ़ावा देना।
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कम से कम 40 स्थान-विशिष्ट शोध एवं विकास गतिविधियों के समर्थन के लिए विभिन्न संस्थानों / विश्वविद्यालयों / गैर सरकारी संगठनों को बाह्य वित्तीय सहायता जारी रखना।
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संपूर्ण निगरानी संकेतक
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आयोजित यंग रिसचर्स फोरमों की (संख्या) |
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विकसित नीतिगत संक्षेपों की संख्या। |
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संपूर्ण भारतीय हिमालयी क्षेत्र में आयोजित जागरूकता एवं क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की संख्या। |
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पर्वत केंद्रित नीतियों और प्रथाओं पर केंद्रित तैयार किए गए सारसंक्षपों की संख्या। |
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तैयार मूल्यांकन रिपोर्ट/मैनुअलों की संख्या। |
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विकसित किए गए प्रषिक्षकों के प्रषिक्षण के मांड्यूलों की संख्या। |
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प्रषिक्षकों का प्रषिक्षण, आयोजित क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की संख्या /प्रतिभागी आदि । |
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राज्यों हेतु पर्यावरण परिवर्तन पर डेटा केंद्रों के लिए समन्वय ढांचों की संख्या। |
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विषयगत प्रषिक्षण माध्यम/प्रारूप-आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं तैयारियां एवं प्रबंधन। संख्या |
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बांस भवनों का निर्माण और प्रदर्शनों की संख्या। |
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कम लागत वाले विकसित बांस संरक्षित तकनीकों पर लघु उद्यमों क्षेत्रीय प्रारूपों की संख्या |
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पर्वतीय समुदाय का सामाजिक-आर्थिक उत्थान (रूपया/प्रतिव्यक्ति) |
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नई कृषि आधारित विकसित उद्यमों की संख्या। |
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ग्रामीणों का आय वर्धन (रूपया/प्रतिव्यक्ति) |
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महिला कृषकों का क्षमता संवर्धन -संख्या |
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लक्ष्य सहकारिता का दक्षता संवर्धन एवं बाजार के साथ व्यापार वृद्धि- (रूपए में ) |
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प्रदेय
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o सभी 12 भारतीय हिमालयी राज्यों के लिए युवा शोधकर्ताओं के मंचों का आवधिक एकीकरण कर यंग रिसर्च फैलो श्रृंखला प्रकाशन। |
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कमियों को पूर्ण कर सुधार एवं संस्तुतियों हेतु 11 नीतिगत पत्र(न्यूजलैटर) |
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सतत विकास के लिए जलवायु परिवर्तन को जोड़ने वाले भारतीय हिमालयी क्षेत्र में सर्वोत्तम प्रथाओं का एक संग्रह। |
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उत्पन्न जागरूकता (छात्र संख्या), गांव/ स्थानीय निकाय (संख्या), अधिकारी (संख्या) |
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सामुदायिक जोखिम रजिस्टर का विकास (संख्या) |
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राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय स्तर, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों का आयोजन (संख्या / प्रतिभागी)। |
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15-20 गांवों के लिए अच्छे और लचीला पारिस्थितिकी तंत्र विकास योजना |
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15-20 गांवों में गहन आजीविका /पारिस्थितिक तंत्र बहाली गतिविधियों का आयोजन। |
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नीति के साथ पूरक ग्रामीण आजीविका विकल्प पर एक संग्रह। |
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लक्षित पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन एवं महिला श्रम की समीक्षा एवं संस्तुतियां। |
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50 लक्षित गांवों और स्थानीय निकायों के लिए सामुदायिक जोखिम रजिस्टरों का विकास करें। |
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4 राज्यों के लिए हितधारकों की आवश्यकतानुसार अनुकूलित प्रशिक्षणों का प्रशिक्षण मॉड्यूल। |
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प्रशिक्षित सरकारी अधिकारी, ग्रामीण विकास कार्यकर्ता, रेंज अधिकारी, फॉरेस्टर, वन गार्ड, वान पंचायत, शिक्षकों, छात्र, जनप्रतिनिधि और अन्य लाइन विभागों के अधिकारी। |
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4 राज्यों के लिए उपयोगकर्ता के अनुकूल और व्यापक डेटाबेस के लिए फ्रेमवर्क। |
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विषयगत प्रशिक्षण उपकरण मैनुअल - डीआरआर और पी एंड एम /गाइडबुक तैयार (संख्या)। |
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झीलों की पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के संरक्षण और उपयोग के लिए कार्य योजना (विशिष्ट उद्देश्यों, निगरानी संकेतक, और मापनीय परिणामों के साथ)। |
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हिल समुदायों के कौशल उन्नयन और क्षमता निर्माण पर प्रशिक्षण (बांस संरक्षण तकनीकों पर 500 लक्षित उपयोगकर्ता)। |
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दो परियोजना स्थलों में 2 सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना और बांस उपचार केंद्र की स्थापना। |
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आजीविका के माध्यम से उद्यमशीलता विकास - सहभागिता तरीके से पर्यावरण अभिसरण मॉडल और डीआरआर मॉडल। |
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6 बांस के घरों का निर्माण और प्रदर्शन और मैन्युअल विकसित किया जाना चाहिए। |
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Achievements till date ...
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Total 505 Skill development/Training Program organized and participated by 24989 beneficiaries on different issues like Water management, Management of NTFP, Low cost Bamboo treatment, Medicinal plant cultivation, Horticulture Skills, Mushroom Cultivation, Saffron Cultivation, Solar energy, Honey Bee Keeping’, Plant Taxonomy, GIS Mapping, etc. |
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Total 331 workshop and Awareness Program are organized with >12000 participants on-Spring Rejuvenation, Organic farming, Biodiversity Conservation, Disaster Bamboo Treatment Method, Restoration of ecosystem services, etc. |
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Conducted 17 trainings on fruit processing in 12 hamlets (participated by 300 local people) -Uttarakhand |
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More than 40 technologies were successfully demonstrated to village communities in Uttarakhand and HP |
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59 small micro-enterprises initiated - Wild edible produces, medicinal plant cultivation, cut flower/saffron farming, Organic farming, Eco-tourism, Low Cost Solar Water Heater, Apple cultivation, Bamboo treatment, Mushroom Cultivation, Women based milk dairy, orchid cultivation, Fish Pen culture, Bee Keeping, Pine Needles Biomass Gasification Based Electricity Generation, Fiber based products, etc. (Total >31,000 beneficiaries from 177 Villages)-09 IHR states |
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Developed earthquake resilient housing structure model by using treated bamboo in Tripura |
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Healthy and resilient ecosystem development plans developed for 6 village sites and also developed the indicators of a resilient village ecosystem at the individual and Community level in Uttarakhand |
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Total 196 farmers (15 Village) of High altitude area of Uttarakhand have cultivated the MPs in 12.84 Ha land (Net income Rs 34000-67000/ farmer) |
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Under Intensive livelihood/ ecosystem restoration activities following interventions has been done in Uttarakhand:
• Established Web of water tanks (322 Nos/10,000 litters each) for ensuring the water security of 12 villages
• Polyhouses construction for off seasons (43 no in 03 Village)
• Plantation of fodder, and fruit trees (~30000 no.)
• Established one (1) restaurant managed by women
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