प्रसंग |
तेजस्वी हिमालय] देश में ऊपरी भाग में रहने वाले लाखों लोगों के लिए एक जीवनदायी प्रणाली है वहीं देश के तराई भाग में रहने वाले बहुसंख्यक लोगों को जीवन प्रदान करता है। यह एशिया के अधिकांश हिस्सों में जलवायु नियामक का काम करता है। इस विविध एवं विशाल पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं भारतीय उप- महाद्वीप के अधिकांश हिस्से के निर्वाह में महत्वपूर्ण योगदान देती है। यह सब जैव]- भौतिक और सामाजिक] सांस्कृतिक विविधता की समृद्धि और विशिष्टता के साथ] इस क्षेत्र को वैश्विक मान्यता मिली है। हालांकि यह प्रणाली जटिल और नवीन है, यह क्षेत्र भू-सक्रिय और स्वाभाविक रूप से अस्थिर ] नाजुक और भूकंप] भू- स्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त रहता है] जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से प्रभावित हो रहे हैं। 2010 में लेह जैसी घटनाएं] 2013 में केदारनाथ] सितम्बर 2014 में कश्मीर और अप्रैल 2015 में नेपाल और भारत के पड़ोसी भागों में आई इस प्रकार की आपदाएं हाल के कुछ उदाहरण है। हिमालय में अंतरनिहित नाजुकता और तीव्र भेद्यता के साथ उसकी जटिलता को देखते हुए इसके पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षण और विकास सम्बंधी हस्तक्षेपों के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
अब यह भली भॉति मान लिया गया है कि पहाड़ की विशिष्टता की अनिवार्यता को नजरअंदाज करने वाले हस्तक्षेपों के कारण यहां संसाधनों का दुरूपयोग होगा और पर्यावरण क्षरण में तेजी आएगी। यह दीर्घकालिक संरक्षण और सतत् विकास के नए प्रतिमानों को विकसित करने का आह्वाहन करता है] जो विशेष रूप से इस क्षेत्र में आर्थिक हितों पारिस्थितिक अनिवार्यताओं को सामान्य देश और विशेष रूप से क्षेत्र में जटिल संतुलन की पुनर्बहाली में मदद करता है। हालांकि भारतीय हिमालीय राज्यों के संदर्भ में नए प्रतिमानों के बारे में सोचते समय विभिन्न कारकों पर विचार करना महत्वपूर्ण होंगे।
1- क्षेत्र की प्रति इकाई पर न्यून निवेश 2- स्थानीय आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के ऑकलन के बाद नई प्रौद्योगिकी का परिचय। 3- पृथक विकासात्मक प्रयास और प्राकृतिक संसाधनों के एकीकृत प्रबंधन के बिना। 4- नई सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के लाभ को अधिकतम करने के लिए सहक्रियाओं और सपंर्कों का अभाव। 5- शिक्षा कार्यक्रमों का सीमित और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप प्रसार। 6- क्षेत्र में पारिस्थितिक अनिवार्यता और आर्थिक हितों का समर्थन करने के लिए दीर्घकालिक अध्ययनों में कमी।
उपरोक्त को मानते हुए और यह महसूस करते हुए कि हिमालय देश की पारिस्थितिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, भारत सरकार अद्वितीय और संवेदनशील हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिता देती है। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (NMHS) एक केंद्रीय अनुदान सहायता योजना है] इसलिए तंत्र के घटकों और उनके अंर्तसम्बंधों की समग्र समझ के द्वारा संरक्षण से सम्बंधित प्रमुख मुददों को संबोधित करने के लिए अत्यधिक ध्यान देने का लक्ष्य है। साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी प्रबंधन हो जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो और क्षेत्र में पारिस्थितिकीय तंत्र स्वस्थ बनाया जा सके।
राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन से अपेक्षा लगाई गई है कि वह विशेषकर भारतीय हिमालयी क्षेत्रों हेतु 12 वीं पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के तहत पर्यावरण] वन] वन्यजीव व जलवायु परिवर्तन के 13 निगरानी लक्ष्यों का समर्थन करे। यह कल्पना की गई है कि राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन 12वीं योजना में पर्यावरण आच्छादन ] वन एवं आजीविका] वन्यजीव] ईकोटूरिज्म और पुश कल्याण, तथा पारिस्थितिकी एवं जैवविविधता के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहयोग करेगा। साथ ही यह योजना भारतीय हिमालयी राज्यों में विभिन्न राष्ट्रीय कानूनों और नीतियों के कार्यान्वयन और प्रभावशीलता को समझने और बेहतर बनाने में मदद करेगी। सरकार क्षेत्र के विशिष्ट मुददों पर केंद्रित कानूनी और नीतियां की आवश्यकता पर बेहतर जवाब देने की स्थिति में होगी। इसके अलावा राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के तहत विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग DST द्वारा अनुरक्षित हिमालयी पारिस्थितिकीय तंत्र (NMSHE) द्वारा किए जा रहे कामों को पूरा करने और उसके परिणामों में पूरक बनने का भी काम करेगा।
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